उत्तर: कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में घुस जाते हैं तो वह उनकी ओर आकर्षित हो जता है। पहले तो वह उन्हीं में खो जता है उसे लगता है की जैसे कंचों का जार बड़ा होकर आसमान-सा बड़ा हो गया और वह उसके भीतर चला गया। वहाँ और कोई नहीं था। वह अकेला ही कंचे चारों ओर बिखेरता हुआ मजे से खेल रहा था। हरी लकीर वाले सफ़ेद गोल कंचे उसके दिमाग में पूरी तरह छा गए। मास्टर जी कक्षा में पाठ "रेलगाड़ी" का पढ़ा रहे थे लेकिन उसके दिमाग में कंचों का खेल चल रहा था। वह सोच रहा था कि जॉर्ज इन कंचों से कैसे खेलेगा, इन कंचों को पाकर कितना खुश होगा, उसके साथ ही मैं कंचे खरीदूँगा। उसने कंचों के चक्कर में मास्टर जी से डांट भी खाई लेकिन उसका दिमाग तो केवल कंचों के बारे में ही सोच रहा था।
प्रश्न २: दुकानदार और ड्राइवर के सामने अप्पू कि क्या स्थिति है? वे दोनों उसको देखकर पहले परेशान होते हैं, फ़िर हँसतें हैं। कारण बताइये।
उत्तर: दुकानदार व ड्राइवर के सामने अप्पू एक छोटा बच्चा है जो अपनी ही दुनिया में मस्त है। दुकानदार उसे देखकर पहले परेशान होता है। व कंचे देख तो रहा है लेकिन खरीद नहीं रहा। फ़िर जैसे ही अप्पू ने कंचे ख़रीदे तो वह हँस दिया। ऐसे ही जब अप्पू के कंचे सड़क पर बिखर जाते हैं तो तेज़ रफ़्तार से आती कार का ड्राइवर यह देखकर परेशान हो जाता है कि वह दुर्घटना कि परवाह किए बिना, सड़क पर कंचे बीन रहा है। लेकिन जैसे ही अप्पू उसे इशारा करके अपना कंचा दिखाता है तो वह उसकी बचपन कि शरारत समझकर हँसने लगता है।
No comments:
Post a Comment