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Saturday, August 29, 2009

Kshitij Bhag - 1 (Text Book Exercise Solutions)

प्रश्न १: ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?
उत्तर: कवि को ब्रजभूमि से गहरा प्रेम है। वह इस जन्म में ही नहीं, अगले जन्म में भी ब्रजभूमि का वासी बने रहना चाहता है। इश्वर अगले जन्म में उसे ग्वाला बनाएँ, गाय बनाएँ, पक्षी बनाएँ या पत्थर - वह हर हाल में ब्रजभूमि में रहना चाहता है। वह ब्रजभूमि के वन, बाग़, सरोवर और करील-कुंजों पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को भी तैयार है।
प्रश्न २: कवि का ब्रज के वन, बाग़ और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण है?
उत्तर: कवि का ब्रज के वन, बाग़ और तालाब को इसलिए निहारना चाहता है क्योंकि इसके साथ कृष्ण की यादें जुड़ी हुई है। कभी कृष्ण इन्हीं में विहार किया करते थे। इसलिए कवि उन्हें देखकर धन्य हो जाते है।
प्रश्न ३: एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है?
उत्तर: कवि के लिए सबसे महत्वपूर्ण है - कृष्ण। इसलिए कृष्ण की एक-एक चीज़ उसके लिए महत्वपूर्ण है। यही कारण है की वह कृष्ण की लाठी और कंबल के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार है।
प्रश्न ४: सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिये।
उत्तर: सखी ने गोपी से आग्रह किया था कि वह कृष्ण के समान सर पर मोरपंखों का मुकुट धारण करें। गले में गुंजों की माला पहने। तन पर पीले वस्त्र पहने। हाथों में लाठी थामे और पशुओं के संग विचरण करें।
प्रश्न ५: आपके विचार से कवि पशु, पक्षी, पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?
उत्तर: मेरे विचार से रसखान कृष्ण के अनन्य भक्त हैं। वे किसी भी सूरत में कृष्ण का सान्निध्य चाहते हैं। इसमें उनकी भक्ति-भावना तृप्त होती है। इसलिए वे पशु, पक्षी या पहाड़ बनकर भी कृष्ण का संपर्क चाहतें हैं।
प्रश्न ७: भाव स्पष्ट कीजिये -
(क) कोटिक ऐ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।
(ख) माई री वा मुख की मुस्कानी सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै ।
उत्तर:
(क) रसखान ब्रजभूमि से इतना प्रेम करतें हैं की वे काँटेदार करील के कुंजों के लिए करोड़ों महलों के सुख को भी न्योछावर करने को तैयार है। आशय यह है की वे महलों की सुख-सुविधा त्याग कर भी उस ब्रजभूमि पर रहना पसंद करते हैं।
(ख) एक गोपी कृष्ण की मधुर-मोहिनी मुस्कान पर इतनी मुग्ध है की उससे कृष्ण की मोहकता झेली नहीं जाती। वह पूरी तरह उस पर समर्पित हो गई है।
प्रश्न ९: काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिये -
"या मुरली मुरलीधर की अधरन धरी अधरा न धरौंगी। "
उत्तर: इसमें यमक अलंकार का सौंदर्य है। 'मुरली मुरलीधर' में सभंग यमक है। 'अधरन' धरी 'अधरा न' में भी सभंग यमक है।
अधरन -- अधरों पर।
अधरा न -- होंठों पर नहीं।
अनुप्रास अलंकार का सौंदर्य भी देखते बनता है।

प्रश्न १: 'मानसरोवर' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर: 'मानसरोवर' के दो अर्थ हैं -

* एक पवित्र सरोवर जिसमें हंस विहार करते हैं।
* पवित्र मन या मानस।

प्रश्न २: कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर: कवि के अनुसार सच्चे प्रेमी की कसौटी यह है की उससे मिलने पर मन की सारी मलिनता नष्ट हो जाती है। पाप धुल जाते हैं और सदभावनाएँ जाग्रत हो जाती है।
प्रश्न ३: तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्व दिया है?
उत्तर: इस दोहे में अनुभव से प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान को महत्व दिया गया है।
प्रश्न ४: इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
उत्तर: कबीर के अनुसार, सच्चा संत वह है जो साम्प्रदायिक भेद-भाव, तर्क-वितर्क और वैर-विरोध के झगड़े में न पड़कर निश्छल भाव से प्रभु की भक्ति में लीं रहता है।
प्रश्न ५: अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर: अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है -
(क) अपने-अपने मत को श्रेष्ठ मानने की संकीर्णता और दूसरे के धर्म की निंदा करने की संकीर्णता।
(ख) ऊंचे कुल के अहंकार में जीने की संकीर्णता।
प्रश्न ६: किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिये।
उत्तर: किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है, न कि उसके कुल से। आज तक हजारों राजा पैदा हुए और मर गए। परन्तु लोग जिन्हें जानते हैं, वे हैं - राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि। इन्हें इसलिए जाना गया क्योंकि ये केवल कुल से ऊँचे नहीं थे, बल्कि इन्होंने ऊँचें कर्म किए। इनके विपरीत कबीर, सूर, युल्सी बहुत सामान्य घरों से थे। इन्हें बचपन में ठोकरें भी कहानी पड़ीं। परन्तु फ़िर भी वे अपने श्रेष्ठ कर्मों के आधार पर संसार-भर में प्रसिद्ध हो गए। इसलिए हम कह सकते हैं कि महत्व ऊँचे कर्मों का होता है, कुल का नहीं।
प्रश्न ८: मनुष्य इश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है?
उत्तर: मनुष्य इश्वर को मंदिर, मसजिद, काबा, कैलाश, योग, वैराग्य तथा विविध पूजा-पद्धतियों में ढूँढ़ता फिरता है। कोई अपने देवता के मंदिर में जाता है, कोई मसजिद में जाता है। कोई उसे अपने तीर्थ स्थलों में खोजता है। कोई योग-साधना या संन्यास में परमात्मा को खोजता है। कोए अन्य किसी साधना पद्धति को अपनाकर इश्वर को खोजता है।
प्रश्न ९: कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर: कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर न मंदिर में है, न मसजिद में; न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में; वह न कर्म करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से। ये सब उपरी दिखावे हैं, ढोंग हैं। इनमें मन लगाना व्यर्थ है।
प्रश्न १०: कबीर ने ईश्वर को 'सब स्वांसों की स्वाँस में' क्यों कहा है?
उत्तर: कबीर के अनुसार, ईश्वर घाट-घाट में व्याप्त कण-कण में विराजमान हैं। स्वाँस-स्वाँस में समाया हुआ है। वह हर प्राणी के मन में विराजमान हैं।
प्रश्न ११: कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आंधी से क्यों की?
उत्तर: कबीर के अनुसार, जब प्रभु-ज्ञान का आवेश होता है उसका प्रभाव चमत्कारी होता है। उससे पूरी जीवन-शैली बदल जाती है। सांसारिक बंधन पूरी तरह कट जाते हैं। यह परिवर्तन धीरे-धीरे नहीं होता है, बल्कि एकाएक और पूरे वेग से होता है। इसीलिए उसकी तुलना सामान्य हवा से न करके आंधी से की गई है।
प्रश्न १२: ज्ञान की आंधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: ज्ञान की आंधी के आने से भक्त के मन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उसके मन के भ्रम दूर हो जाते हैं। माया, मोह, स्वार्थ, धन, तृष्णा, कुबुद्धि और विकार समाप्त हो जाते हैं। इसके बाद उसके शुद्ध मन में भक्ति और प्रेम की वर्षा होती है जिससे जीवन में आनंद ही आनंद छा जाता है।


प्रश्न १: थोंगला के पहले के आख़िरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के वावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों?
उत्तर: इसका मुख्य कारण था - संबंधों का महत्व। तिब्बत में इस मार्ग पर यात्रियों के लिए एक-जैसी व्यवस्थाएँ नहीं थीं। इसलिए वहाँ जान-पहचान के आधार पर ठहरने का उचित स्थान मिल जाता था। बिना जान-पहचान के यात्रियों को भटकना पड़ता था। तथा तिब्बत के लोग शाम छः बजे के बाद छंग पीकर मस्त हो जाते थे। तब वे यात्रियों की सुबिधा का ध्यान नहीं रखते थे।
पहली यात्रा में लेखक सुमति के साथ थे जिनका वहाँ अच्छे जान-पहचान के आदमी थे। इसीलिए पहली यात्रा के समय भिखमंगे के वेश में होने के वावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका।
प्रश्न २: उस समय के तिब्बत में हथियार का क़ानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?
उत्तर: सन् १९२९ - ३० के तिब्बत में हथियार रखने से सम्बंधित कोई क़ानून नहीं था। इस कारण लोग खुलेआम पिस्तौल बन्दूक आदि रखते थे। साथ ही, वहाँ अनेक निर्जन स्थान भी थे, जहाँ न पुलिस का प्रबंध था, न खुफिया बिभाग का। वहाँ डाकू किसी को भी आसानी से मार सकते थे। इसीलिए यात्रियों को ह्त्या और लूटमार का भय बना रहता था।
प्रश्न ३: लेखक लंग्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गए थे?
उत्तर: लेखक लंग्कोर के मार्ग में अपने साथियों से दो कारणों से पिछड़ गए थे -
१) उनका घोड़ा बहुत सुस्त था।
२) वे रास्ता भटककर एक-डेढ़ मील ग़लत रास्ते पर चले गए थे। उन्हें वहाँ से वापस आना पड़ा।
प्रश्न ४: लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परन्तु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?
उत्तर: लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से इसलिए रोका ताकि वह वहाँ जाकर अधिक समय न लगाए। इससे लेखक को एक सप्ताह तक उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ती। परन्तु दूसरी बार, लेखक को वहाँ के मंदिर में रखी अनेक मूल्यवान हस्तलिखित पुस्तकें मिल गयी थीं। वह एकांत में उनका अध्ययन करना चाहता थे। इसलिए उन्होंने सुमति को जजमानों के पास जाने की अनुमति नहीं दी।
प्रश्न ५: अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाईयों का सामना करा पड़ा?
उत्तर: अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान लेखक को विभिन्न कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। जगह-जगह रास्ता कठिन तो था ही साथ में परिवेश भी बिल्कुल नया था। एक बार तो भूलवश रास्ता भटक गया। दूसरी बार, उन्हें बहुत तेज़ धुप के कारण परेशान होना पड़ा।
प्रश्न ६: प्रस्तुत यात्रा-वृत्तान्त के आधार पर बताइए की उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?
उत्तर: तिब्बत का तिंग्री प्रदेश विभिन्न जागीरों में विभक्त है। अधिकतर जागीरें विभिन्न मठों के अधीन हैं। जागीरों के मालिक खेती का प्रबंध स्वयं करवाते हैं। खेती करने के लिए उन्हें बेगार मजदूर मिल जाते हैं। सारे प्रबंध की देखभाल कोई भिक्षु करता है। वह भिक्षु जागीर के लोगों में राजा के समान सम्मान पाता है। तिब्बत के समाज में छुआछूत, जाती-पाँति आदि कुप्रथाएँ नहीं हैं। कोई अपरिचित व्यक्ति भी किसी के घर में अन्दर तक जा सकता है। वह अपनी झोली में से चाय की पत्ती देकर घर की महिलाओं से चाय बनवा सकता है। सास-बहू-कोई भी इसका बुरा नहीं मानती। हाँ, बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को घरों में नहीं घुसने दिया जाता।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न ८: सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
उत्तर: सुमति के परिचय और सम्मान का दायरा बहुत बड़ा है। तिब्बत के तिंग्री प्रदेश में लगभग हर गाँव में उसके परिचित हैं। वह उनके यहाँ धर्मगुरु के रूप में सम्मानित होता है। लोग उसे आदरपूर्वक घर में स्थान देते हैं। वह सबको बोध गया का गंडा प्रदान करता है। लोग गंडे को पाकर धन्य अनुभव करते हैं।
सुमति स्वभाव से सरल, मिलनसार, स्नेही और मृदु रहा होगा। तभी लोग उसे उचित आदर देते होंगे।

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